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श्रीलंका की राम कथा 29 जनवरी 2019 भारद्वाज मंच
श्रीलंका की राम कथा
श्रीलंका के संस्कृत एवं पाली साहित्य का प्राचीन काल से ही भारत से घनिष्ट संबंध था। भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित ‘जानकी हरण’ के रचनाकार कुमार दास के संबंध में कहा जाता है कि वे महाकवि कालिदास के अनन्य मित्र थे। कुमार दास (५१२-२१ई.) लंका के राजा थे। इतिहासकारों ने उनकी पहचान कुमार धातुसेन के रुप मं की है।१ कालिदास के ‘रघुवंश’ की परंपरा में विरचित ‘जानकी हरण’ संस्कृत का एक उत्कृष्ट महाकाव्य है। इसकी महनीयता इस तथ्य से रेखांकित होती है कि इसके अनेक श्लोक काव्य शास्र के परवर्ती ग्रंथों में उद्धृत किये गये हैं। इसका कथ्य वाल्मीकि रामायण पर आधारित है।
सिंहली साहित्य में राम कथा पर आधारित कोई स्वतंत्र रचना नहीं है। श्री लंका के पर्वतीय क्षेत्र में कोहंवा देवता की पूजा होती है। इस अवसर पर मलेराज कथाव (पुष्पराज की कथा) कहने का प्रचलन है।२ इस अनुष्ठान का आरंभ श्रीलंका के सिंहली सम्राट पांडुवासव देव के समय ईसा के पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ था।
मलेराज की कथा के अनुसार राम के रुप में अवतरित विष्णु एक बार शनि की साढ़े साती के प्रभाव क्षेत्र में आ गये। उन्होंने उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए सीता से अलग हठकर हाथी का रुप धारण कर सात वर्ष व्यतीत किया। समय पूरा होने में जब एक सप्ताह बाकी था, तब दानवराज रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। उसने देवी सीता को पथ भ्रष्ट करना चाहा। सीता ने कहा कि वे तीन महीने के व्रत पर हैं। व्रत की अवधि समाप्त हो जाने के बाद वे उसकी इच्छा की पूर्ति करने का प्रयत्न करेंगी।
सात वर्ष पूरा होने पर राम घर लौटे। अपने निवास स्थानपर सीता को अनुपस्थित पाकर वे उनकी तलाश में निकल पड़े। वे जंगल में भटक रहे थे। उसी क्रम में अचानक उनकी भेंट विषादग्रस्त वालि से हुई। वारनराज ने वालि की पत्नी का अपहरण कर लिया था। उसने अपनी पत्नी की पुन: प्राप्ति हेतु राम से सहयोग की याचना की। उसके बदले वह रावण के छलकर सीता को वापस लाने का वचन दिया।
राम ने वानरराज का वध कर दिया। वालि को अपनी पत्नी मिल गयी। उसने राम को समुद्र पर चलने और अग्नि तथा बाण से निरापद रहने का वरदान दिया। वालि रावण के उद्यान में चला गया। वह पेड़ पर चढ़कर आम खाने लगा। राक्षसों ने उसे पकड़ने का प्रयत्न किया, किंतु विफल हो जाने पर उन लोगों ने इसकी सूचना दानव राज को दी। राजा के सैनिकों ने उसे घेर लिया। वे उसके कौतुक का आनंद लेने लगे। रावण के साथ सीता भी वहाँ उपस्थित थी। उन्होंने बंदर की पूँछ में कपड़ा लपेट कर आग लगा देने की सलाह दी। पूँछ में आग लग जाने पर वालि उछल कर महल की छत पर चढ़ गया। उसने संपूर्ण नगर को जला दिया। उसी अस्त-व्यस्तता में वह सीता को लेकर राम के पास चला गया।
लंका से लौटने के बाद सीता गर्भवती हो गयीं। उसी समय राम देवताओं की सभा में भाग लेने चले गये। लौटने पर रावण का चित्र बनाने के कारण उन्होंने लक्ष्मण से वन में ले जाकर सीता का वध कर देने के लिए कहा। लक्ष्मण ने उन्हें वन में छोड़ दिया और किसी वन्य प्राणी का वध कर रक्त रंजित तलवार लिए राम के पास लौटे।
सीता ने वाल्मीकि आश्रम में एक पुत्र को जन्म दिया। एक दिन वे उसे बिछावन पर सुलाकर वन में फल लाने गयीं। बच्चा बिछावन से नीचे गिर गया। वाल्मीकि ने बिछावन पर शिशु को नहीं देखकर उस पर एक कमल पुष्प फेंक दिया। वह शिशु बन गया। वन से लौटने पर उन्होंने दूसरे शिशु का रहस्य जानना चाहा। ॠषि ने सच्ची बात बता दी, किंतु सीता को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने ॠषि को फिर वैसा करने के लिए कहा, तो ॠषि ने कुश के पत्ते से एक अन्य शिशु की रचना कर दी। तीनों बच्चे जब सात वर्ष के हुए। तब वे मलय देश चले गये। वहाँ उन्होंने तीन राज भवनों का निर्माण करवाया। तीनों राजकुमार सदलिंदु, मल और कितसिरी के नाम से विख्यात हुए।