सार्वजनिक चित्रण
छठी आलेखन
सारे अवध में नवजात शिशु के जन्म के छटे दिन बच्चे की बुआ गोबर से लिपी हुई पूर्व दिशा पर ऐपन की थापें रखती है और जच्चा से उसका पूजन करवाती है। वास्तव में ये छ: थापें छ: कृत्तिकाओं का पूजन है। इस समय ननद जी चिराग जलाती हैं उसे नवजात को देखने नहीं दिया जाता है। छठी का थाल तमाम देशी व्यंजनों से भरा जाता है और जच्चा सबके साथ मिलकर उसमें से कुछ खाती है।
ज्योति आलेखन
ज्यूत लिखने में दक्ष स्त्रियां कोहबर की एक पूरी की पूरी दीवार अपनी निपुण उंगलियों से रंग रच कर रख देती है। ज्यूत तो रंग बिरंगा सांस्कृतिक आलेखन है जिसका विस्तार अधिक से अधिक दखने को मिलता है पहले औरतें सीढ़ी लगाकर चहली बांध कर रंग के प्याले ले लेकर ज्यूत रखती थी, अब इस प्रकार के विस्तृत नमूने केवल कस्बों देहातों में ही मिलते हैं। शहरों में तो कागजों पर ही ज्यूत रख कर पूजी जाती है।
चौक की रस्म
हिन्दू संस्कारों ने “सीमान्तो नयन संस्कार” का विशेष महत्व है जो गर्भस्थ शिशु के सातवें महीने में किया जाता है। आमतौर से लोग इसे चौक की रस्म, गोद भराई या सतवासे की रीति कहते हैं। यह रस्म ससुराल के आंगन में पूरी की जाती है और इसके लिए उपहार लड़की के मायके से आते हैं। जिसमें सर्वाधिक कलापूर्ण ” गोठे की साड़ी’ सात गज सफेद तनजेब की होती है जो लड़की के मायके की बहू-बेटियां बड़े उत्साह से लोक रगों तथा लोक आलेखनों से सुचित्रित करती हैं। इस प्रक्रिया को ‘गोठा गोठना’ कहते हैं। यह पूरी साड़ी बार्डर, बूटी और पल्लेदार बनायी जाती है इसकी तमाम कारीगरी हल्दी मिले ऐपन सींक और फुलहरी द्वारा की जाती है। सज्जा का अन्तिम रूप देने के लिए पीले सिन्दूर और काजल बिन्दुओं का प्रयोग जिया जाता है । साड़ी की बेल और नीचे की बूटियों के लिए बदलते समय के साथ अब लकड़ी के छापों का प्रयोग भी होता है। गोठे की साड़ी का सर्वाधिक कला कौशल इसके आंचल पर होता है जिसमें यह सारे मंगल प्रतीक लोक देवता नए पशु वनस्पति तथा शुभ चिन्ह बनाई जाते हैं जो अवध के पूजा अवसरों पर रखे जाते हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं कि ये लोक कलायें जीवन को एक जादू भरा मोहक स्पर्श देती हैं। अवध के धरा अलंकरण में जो भाव बोध है यह जीवन के छिपे रहस्य का अर्थ, लहरदार लयात्मकता लिये हुये हैं। उजले लेपन का अजलापन शान्ति व शुद्धता का परिचायक है।