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 उत्तर प्रदेश सरकार

अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, उ0प्र0

तुलसी स्मारक भवन ,अयोध्या, उत्तर प्रदेश (भारत) 224123.
सम्पर्कः : +91-9532014477

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अयोध्या शोध संस्थान

स्थानीय मंदिर

यादव पंचायती मंदिर

धर्मनगरी अयोध्या में यदुवंशीय दो धाराएं एक साथ चलीं। एक तो कृष्णमय थी और दूसरी राममय। इसी कारण यादवों की पंचायतों में अपनी-अपनी धारा के पृथक-पृथक मंदिरों का निर्माण करवाया। अयोध्या के स्वर्गद्वार मोहल्ले में निर्मित अखिल भारतीय यादव वंश पंचायती मंदिर में श्रीराम दरबार को ही स्थान मिला। इस मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्तियां प्राण प्रतिष्ठित नही हैं।

पासी मंदिर

मध्य भारत के राजा मध्य के दस्यु से पासी जाति का उदय हुआ। पासी भारत के मूल निवासियों में से थी । यह बहादुर और जुझारु प्रवृत्ति के लोगों का कुनबा था। अयोध्या में सूर्यवंश की सत्ता जब खत्म हुई तो राजा आरख्त पासी का राजा हुआ। इन्हें राजपासी के नाम से जाना जाता है। इन्हीं पासियों का एक जातीय पंचायती अयोध्या के कनीगंज मोहल्ले में सन उन्नीस सौ के पूर्वार्ध्द में स्थापित किया गया।

यादव मंदिर

जातीय पंचायती मंदिरों में से एक अयोध्या का यादव मंदिर भी है। अयोध्या के जातीय मंदिरों की परम्परा के विपरीत इस पंचायती मंदिर में श्रीराम जानकी दरबार के स्थान हैं। मंदिर की स्थापना सन 1934 में एक बीघा भूमि क्रय करके बिरादरी के चंदे से की गयी। अयोध्या के अन्य जातीय पंचायती मंदिरों की भांति यहाँ भी स्वजातीय पुजारी की परम्परा आरंभ से है। अयोध्या के प्रमुख पर्वों पर यहाँ उत्सव होता है परन्तु जन्माष्टमी विशेष पर्व के रूप में आयोजित होती है। मंदिर की व्यवस्था स्वजातीय बंधुओं के अंशदान से ही की जाती है।

पाण्डव क्षत्रिय मंदिर

संत कबीर की परम्परा को आगे बढ़ाने में संतरविदास का उल्लेखनीय योगदान रहा । या यूं कहा जाय कि रविदास नव्य मानववाद के आरंभिक संस्थापकों में से एक थे तो अतिशयोक्ति न होगी। संत रविदास अछूतों के उद्धारक के रुप में चिर अमर हुए । उनकी धारा ने दलितों में मानववाद को पल्लवित किया जो शनैः शनैः वट वृक्ष का आकार लेती गयी। अछूतों की बड़ी संख्या संत रविदास की प्रेरणा से राष्ट्रीय धारा में समाहित हुई और उनमें सात्विकता का संचार हुआ। इसी महान विभूति की स्मृति में अनुयायी दलितों के समूह ने अयोध्या में संत रविदास पंचायती मंदिर की स्थापना सन 1918 में की |

हलवाई मंदिर

मोदनवाल समाज अपने को ऋषि कश्यप और ऋषि मोदनवाल की स्मृतियों को चिर अमर करने के लिए अयोध्या जब श्रीराम मय हुई और समाज में रामराज की धारा समाहित हुई तो अयोध्या नगरी में अलग-अलग स्थानों पर चार हलवाई मंदिरों की स्थापना की गयी। अवैध कबजों का शिकार हो तीन मंदिर अपनी पहचान खो चुके हैं। परंतु रायगंज में स्थित अखिल भारतीय कान्यकुब्ज वैश्य हलवाई पंचायती श्रीराम जानकी मंदिर अभी भी भव्यता के साथ विद्यमान हैं ।

श्री विश्वकर्मा मंदिर

काष्ठ शिल्पियों ने विश्वकर्मा जी को अपना पूर्वज ही नहीं वरन आराध्य के रुप में भी स्वीकार किया । उन्हीं काष्ठ शिल्पियों ने अयोध्या नगरी के रायगंज मुहल्ले में अपनी जातीय पहचान के लिए श्री विश्वकर्मा मंदिर की स्थापना संवत 1973 में की । मंदिर में विश्वकर्मा भगवान की भव्य मूर्ति के साथ-साथ भगवान श्रीराम. माता जानकी, रामलला और राधाकृष्ण की मूर्तियां प्राण प्रतिष्ठित है । विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति संगमरमर की और अन्य मूर्तियां अष्टधातु की है।

संत रविदास मंदिर

धर्मनगरी अयोध्या में यदुवंशीय दो धाराएं एक साथ चलीं। एक तो कृष्णमय थी और दूसरी राममय। इसी कारण यादवों की पंचायतों में अपनी-अपनी धारा के पृथक-पृथक मंदिरों का निर्माण करवाया। अयोध्या के स्वर्गद्वार मोहल्ले में निर्मित अखिल भारतीय यादव वंश पंचायती मंदिर में श्रीराम दरबार को ही स्थान मिला। इस मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्तियां प्राण प्रतिष्ठित नही हैं।

बेल्दार मंदिर

मुगल काल में अनेक क्षत्रिय जातियां पददलित हुई लेकिन उन्होंने आतताइयों के प्रभुत्व को स्वीकार करने की अपेक्षा पलायनवादी होना अधिक उचित समझा। इन्हीं में से एक चौहान क्षत्रिय थे जिन्होंने राजपाट छोड़ गावों की राह पकड़ी और मेहनत मशक्कत का मार्ग आजीविका हेतु चुना। कालांतर में इन्हें बेल्दार जाति के रुप में जाना पहचाना गया। बेल्दार पंचायती मंदिर की स्थापना 1973 ई में की ।

कोरी मंदिर

भारत में फैली विभिन्न जातियां भी सन 1900 के बाद अपनी पहचान स्थापित करने के लिए छटपटाने लगी थी। इसी दौरान अयोध्या में भी जातीय मंदिरो के निर्माण का सिलसिला आरंभ हुआ । पददलित कोरी बिरादरी ने भी स्वजातीय एकजुटता के लिए जलवानपुर अयोध्या में सन 1921 में कोरी वंश पंचायती मंदिर का निर्माण शुरु करवाया । कोरी मंदिर के निर्माण में बाबा फागूराम दास का विशेष योगदान रहा । बाबा जगरुप दास के बाद यह दायित्व पुजारी लल्लनदास संभाले हुए हैं। मंदिर में श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण व हनुमान (राम दरबार) की मूर्तियां स्थापित हैं।

पटनवार मंदिर

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मिर्जापुर तक बड़े भूभाग में पटनवार जाति के लोगों का बाहुल्य है। पटनवार बंधुओं ने अयोध्या के ऋणमोचन घाट पर भव्य जातीय मंदिर बनवाया जो हैं रामलखन विहार कुण्ड पटनवार वंश पंचायती मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस जातीय मंदिर में विनय श्रृंखला की संस्कृति का भी दर्शन होता है। पटनवारा मंदिर का निर्माण स्वजातीय बंधुओं के आर्थिक सहयोग से सौ वर्ष पूर्व मौनी बाबा रामलखन दास ने करवाया था।

तैलिक मंदिर

श्रीराम की नगरी की जातीय मंदिरो में से एक वैश्य तैलिक मंदिर भी है जो रानी पदमावती की स्मृतियों को संजोये है। मंदिर के नाम से अपनी पहचान रखने वाला यह जातीय मंदिर अयोध्या नगर के कटरा मोहल्ला में स्थित है।बाबा जगरुप दास के बाद यह दायित्व पुजारी लल्लनदास संभाले हुए हैं। मंदिर में श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण व हनुमान (राम दरबार) की मूर्तियां स्थापित हैं। अयोध्या में तैलिक पंचायती मंदिर की स्थापना संवत 1980 में की गई। अयोध्या के सभी धार्मिक पर्वों पर उत्सव यहाँ आयोजित किये जाते हैं। श्रावण शुक्ल द्धितीया को हर साल विशाल भण्डारा होता है। प्रतिदिन पंतग की सुबह व शाम व्यवस्था होती है।

कुर्मी मंदिर

अनेकता में एकता की प्रतीक अयोध्या में कुर्मी क्षत्रियों का विशाल कुर्मी मंदिर अपनी वैभवगाथा आज भी बयान करता है। इस मंदिर को पंचायती व्यवस्था। के तहत करीब सन 1912 में निर्मित कराया गया है। उन्नीसवीं शाताब्दी के पूर्वार्द्ध में श्री रामनगरी में जातीय मंदिरों की स्थापना का सिलसिला आरंभ हुआ । कुर्मी बिरादरी ने भी इसी दौरान अयोध्या में स्वजातीय मंदिर की स्थापना का निर्णय लिया ।

अयोध्या शोध संस्थान

अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा एतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में 18 अगस्त, 1986 को की गयी। यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है। वस्तुतः अयोध्या की पावन भूमि पर सरयु के तट स्थित रामघाट के निकट गोस्वामी तुलसीदास जी ने सम्वत्‌ 1631 की नवमी तिथि भौमवार को श्रीरामचरित मानस की रचना प्रारम्भ की

कैंप कार्यालय

अयोध्या शोध संस्थान

अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा एतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में 18 अगस्त, 1986 को की गयी। यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है। वस्तुतः अयोध्या की पावन भूमि पर सरयु के तट स्थित रामघाट के निकट गोस्वामी तुलसीदास जी ने सम्वत्‌ 1631 की नवमी तिथि भौमवार को श्रीरामचरित मानस की रचना प्रारम्भ की

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