अन्य धार्मिक स्थल
Jain
अयोध्या में जैन घर्म के दो स्थान हैं ।
जैन धर्म जिन से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है: शत्रुओँ एवं कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला। कालान्तर में ‘जिन’ धर्म के अनुयायी जैन कहलाने लगे । जैन धर्म के प्रवर्तकों तथा संस्थापकों को तीर्थकर कहा जाता हे। तीर्थकर का अभिप्राय उन ज्ञान प्राप्त जितेन्दिय महात्माओं से है जिनके उपदेशों तथा विधियों से मानव इस संसार सागर का ज्ञान प्राप्त कर सकता है । जैन धर्मावलम्बियों की यह मान्यता है कि जैन धर्म 24 तीर्थकरों के उपदेश का परिणाम है । इन 24 तीर्थकरों में ऋषभ देव प्रथम क्या महावीर अंतिम है ।
दिगम्बर जैन का मंदिर/धर्मशाला रायगंज में स्थापित है । यहीं पर श्री श्री 108 भगवान श्री ऋषभदेव जी की 31 फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित है । अनादिकाल से इसी भूमि पर 24 तीर्थकरों का जन्म होता आया है, 5 तीर्थकरों का जन्म अयोध्या में हुआ है । इन तीर्थकरों की प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित है । तीर्थ यात्रियों के आवास हेतु बड़े सामान्य 10 कक्ष विशिष्ठ 40 कक्ष निर्माण करवाये गये हैं ।
दिगम्बर जैन इसकी स्थापना वर्ष 1965 में की गयी जिसमें 31 फीट ऊंची व वृषभदेव (आदिनाथ) के साथ ही चार अन्य तीर्थकरों श्री अनन्त नाथ, श्री अजित नाथ, श्री सुमति नाथ, श्री अभिनन्दन नाथ तथा चन्द्र प्रभु जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
श्वेताम्बर जैन यह कटरा मोहल्ले में स्थित है । इस मंदिर का जीर्णोध्दार जैन सम्प्रदाय द्वारा बर्ष 2000 में बनाया गया । इसमें तीर्थकर अजित नाथ, सुमतिनाथ, अभिनन्दननाथ, अनन्तनाथ की पद्मासन मुद्रा में प्रतिमाएं स्थापित है । इसके अतिरिक्त 19 कल्याण के चरण चिन्ह बनाये गये हैं।
Sikh
इस गुरूद्वारे के समीप प्राचीन ब्रम्ह कुण्ड था । कहा जाता है कि ब्रम्हा जी ने इस स्थान पर 5000 वर्षों तक तपस्या किया। ब्रम्ह कुण्ड व उसी सीढ़ी सरयू में विलीन हो चुकी है। ब्रम्ह कुण्ड के कुछ भग्नावशेष हैं । या स्थान अतिरमणीक है इस स्थान से सरयू का विहंगम् दर्शन होता है। आषाढ़ माह में ब्रम्ह कुण्ड पर खड़े होने पर जल ही जल दिखाई देता है। प्रथम गुरू श्री गुरू नानक देय जी महाराज ने हरिद्वार से जगन्नाथपुरी की यात्रा समय सम्वत् 1557 में इसी स्थान पर बैठकर पण्डितों को सत्य उपदेश दिया था। नवम् गुरू श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज आसाम से आनन्दपुर साहब (पंजाब) जाते समय विक्रम सम्वत् 1725 में उक्त स्थान में श्री गुरू नानक देव जी मंत्री साहब पर मत्था टेककर सामने बैठकर 48 घन्टे तक अखण्ड तप किया। अपने चरण कमल की निशानी चरण पादुका (खडाऊँ) यहां के ब्राम्हण । सेवक को प्रदान किया जिसका दर्शन गुरूद्वारे में होता हैं ।
गुरूद्वारा नजरबाग
अयोध्या में नजर बाग मोहल्ले में गुरूनानकपुरा फैजाबाद की एक शाखा स्थापित है। इस स्थान पर भी गुरू गोविन्द सिंह जी आये थे और इस स्थान पर एक छोटी बीड़ (गुरू ग्रन्थ साहब हस्तलिपि) प्राप्त हुई थी। यह स्थान राजा मानसिंह ने गुरूद्वारा हेतु भेंट किया है। इस स्थान से प्राप्त बीड़ नानकपुरा गुरूद्वारे के संग्रहालय में संग्रहीत है। इस गुरुद्वारे में निम्नलिखित पर्व मनाये जाते हैं।
1. गुरू नानक जयन्ती
2. गुरू गोविन्द सिंह जयन्ती
3. शहीद पर्व (युद्ध में शहीद हुये गुरूओं को श्रद्धांजलि दी जाती है)
गुरूद्वारे का भव्य भवन निर्माणाधीन है। जिसमें नीचे लंगर हाल, ऊपर प्रार्थनाहाल कुण्ड का निर्माण किया जाना है ।
Islam
हजरत शीश पैगम्बर की दरगाह – मणि पर्वत।
अयोध्या के मणि पर्वत ऐतिहासिक टीले केपीछे आदम हौआ के बेटे हजरत शीश पैगम्बर की कब्र है। कहा जाता है। हजरत शीश पैगम्बर इस पृथ्वी पर 1300 वर्षों तक जीवित रहे और उनका स्वरुप 70 गज का था वर्तमान में इस स्थान पर आराम कर रहे है । इस स्थान पर 7 गज की इनकी कब्र है। आपके 145 औलाद हुई । उनके पूरे परिवार में सेवकों की कब्र उसी स्थान पर बनी हुई हैं । थोडी दूर से चहारदीवारी बना दी गयी है। जिसके अन्दर उनकी पत्नी बीबी हूर चार लड़के और एक बहू की भी कब्र है । अन्य कब्रें इस चहारदीवारी के बाहर है। इस परिसर में एक मस्जिद है जिसमें नमाज अदा होती है। इस स्थान पर सभी जातियों के लोग अपने पूर्वज आदम हौआ के बेटे के स्थान को देखने के लिये आते हैं और उनकें प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। इस स्थान की देखभाल व पैगम्बर साहब की तिमा२दारी मो० कलीम द्वारा की जाती है। इस स्थान पर शबैरात, जन्मदिन रजब की चार तारीख व मुहर्रम का ताजिया विशेष पर्व व उत्सव मनाये जाते है । हिन्दू व मुसलमान को एक सूत्र में बांधने में एक पवित्र स्थान है । इस स्थान में लगे पत्थर से फैजाबाद के प्राचीन नाम की जानकारी मिलती है । फैजाबाद का प्राचीन नाम ज्योति शरीफ था । यह नाम शेरशाहसूरी के पुत्र आदिरशाह ने रखा था । सिकन्दर लोदी ने बाद में अवध नाम रखा उसके उपरान्त बंगला और फिर बंगला बस्ती उसके उपरान्त फैजाआबाद जिसे बाद में फैजाबाद कहते हैं ।