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 उत्तर प्रदेश सरकार

अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान
संस्कृति विभाग, उ0प्र0

तुलसी स्मारक भवन ,अयोध्या, उत्तर प्रदेश (भारत) 224123.
सम्पर्कः : +91-9532744231

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अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान संस्कृति विभाग, उ0प्र0

मुस्लिम काल

मुस्लिम काल

पूर्व मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के अधिनस्थ अयोध्या ने पुन: एक प्रादेशिक राजधानी के रुप में महत्ता प्राप्त की । तथापि यह हिन्दुओं का पवित्र धार्मिक केन्द्र था। प्रारम्भिक मुस्लिम काल में यहॉ श्रीवास्तव राजा प्रबल  थे ।23 इस समय यहॉ तीन मंदिर जन्म-स्थान, स्वर्गद्वार और त्रेता का ठाकुर मुख्य थे । अयोध्या के रामकोट क्षेत्र का वह विवादित भू-भाग जो हिन्दु तथा मुस्लिम धर्मावावम्बियों के बीच इस समय विवाद का कारण बना हुआ है तथा न्यायलय में उसका स्वामित्व विचाराधीन है, एक प्रसिद्ध सांस्कृतिक चिन्ह के रुप में मान्य रहा है । चर्चित साक्ष्यों के अनुसार इस विवाद का प्रारम्भ सन 1528 ई. में हुआ था, जो आज तक चल रहा है । इसमें वहॉ मंदिर / मस्जिद के होने तथा उसे- ध्वस्त किये जाने के मुद्दे अदालत में विचाराधीन है । संचार माध्यमों के द्वारा इस प्रकरण को राम जन्म भूमि / बाबारी मस्जिद विवाद के रुप में कहा सुना जाता है । ये स्थिति दोनों समुदायों के बीच तनाव तथा शासन प्रशासान के लिए बहुत बड़ी समस्या का कारण बनी हुई है । अकबर के समय यहॉ एक टकसाल थी । आगरा और बंगाल के बीच व्यापारिक मार्ग पर स्थित यह नगर एक व्यापारिक केन्द्र था । मुस्लिम राजधानी होने के बावजूद यहॉ मंदिरों की संख्या बढ़ती गयी । धर्म प्रिय हिन्दुओं ने नागेश्वरनाथ और चंद्रहरि आदि देवों के कई मंदिर पुन: निर्मित किये । इस प्रकार पूरे मुगल काल में (अकबर के समय को छोड़ कर) अयोध्या के सांस्कृतिक भूदृश्य में किसी प्रकार का विकास नहीं हुआ, तथापि यहॉ के सांस्कृतिक भूदृश्य के प्रतीक पुराने राज-मंदिर और सुन्दर देव स्थान किसी न किसी रुप में लोक श्रृंद्धा के केन्द्र बने रहे ।

नवाब सफदरजंग के समय पुन: अयोध्या का सांस्कृतिक विकास प्रारम्भ हुआ । चूँकि इनका मंत्री कायस्थ नवलराय धर्मात्मा थे । उन्होंने नागेश्वरनाथ का मंदिर बनवाया । लक्ष्मण जी के मंदिर के सम्बन्ध में भी ऐसा कहा जाता है कि यह उसी समय बनवाया गया । इसके बाद परवर्ती नवाब शासकों के समय में भी बहुत से मंदिरों का निर्माण हुआ । प्रसिद्ध मंदिर हनुमान-गढ़ी को गढ़ी के आकार में आसफुद्दौला के मंत्री टिकैतराय ने बनवाया । नवाब वाजिद अली शाह के समय में सब मिलाकर 30 मंदिर तैयार हो गये थे । जो नगर के मध्य भाग में ही सीमित रहै । उल्लेखनीय है कि नवाब धर्म प्रिय शासक थे । नवाब के समय पूरी धार्मिक स्वतंत्रता विद्यमान थी । फलस्वरूप यहॉ बहुत से राजमंदिर देव स्थानों का निर्माण हुआ । मंदिर के निर्माण में बहुत से राजपूत राजाओं का योगदान अधिक था । आज भी अयोध्या में अनेक मंदिर है जिनमें अधिकतर अपनी जीर्ण अवस्था में है, राजपूत राजाओं द्वारा बनवाये गये है । इस प्रकार अयोध्या हिंदू धर्म का मुख्य केंद्र बन गया और तुलसीदास के रामचरित मानस की बढ़ती लोक प्रियता के साथ इसकी ख्याति बढ़ती गयी। किंतु इसका विकास मंदिरों के जिर्णौद्धार आदि तक ही सीमित रहा ।

इस समय अयोध्या में अधिकांश मुसलमानों का निवास हो गया था और सरयू तट पर लक्ष्मणघाट से चक्रतीर्थ तक मुसलमानो के मुहल्ले अब तक विद्यमान है । चूँकि अयोध्या प्रारम्भ से ही हिन्दु संस्कृति का एक मुख्य केन्द्रीय धार्मिक स्थान रहा अतएव इस समय भी यह हिन्दुओं का एक पवित्र धार्मिक केन्द्र स्थल बना रहा । उल्लेखनीय है कि 1756 ई0 में शुजाउददौला ने फैजाबाद को अपनी राजधानी बनाया तभी से अयोध्या का राजनैतिक महत्व समाप्त हो गया और यह सिर्फ एक धार्मिक केन्द्र के रुप में महत्वपूर्ण  स्थिति  प्राप्त किये रहा।

नगर के विकास के  मुख्य केन्द्र मंदिर ही हुए । नगर के बसाव क्षेत्र का विस्तार रामकोट क्षेत्र के दक्षिण, एवं पूर्व की ओर हुआ । इस प्रकार यह अपने विद्यमान  नगरीय भूदॄश्य के प्रसार क्षेत्र की स्थिति को प्राप्त हुआ।

अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान

अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा एतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में 18 अगस्त, 1986 को की गयी। यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है। वस्तुतः अयोध्या की पावन भूमि पर सरयु के तट स्थित रामघाट के निकट गोस्वामी तुलसीदास जी ने सम्वत्‌ 1631 की नवमी तिथि भौमवार को श्रीरामचरित मानस की रचना प्रारम्भ की

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कैंप कार्यालय

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अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान

अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा एतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में 18 अगस्त, 1986 को की गयी। यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है। वस्तुतः अयोध्या की पावन भूमि पर सरयु के तट स्थित रामघाट के निकट गोस्वामी तुलसीदास जी ने सम्वत्‌ 1631 की नवमी तिथि भौमवार को श्रीरामचरित मानस की रचना प्रारम्भ की
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