संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश
एवं अध्यक्ष
परिचय: अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान
संस्कृति विभाग, उ0प्र0 शासन द्वारा अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना एक स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में अयोध्या स्थित ऐतिहासिक तुलसी स्मारक भवन में 18 अगस्त, 1986 को की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ-साथ देश-विदेश की विभिन्न संस्कृतियों के साथ सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक आदान-प्रदान के कार्य थे। ऐसी मान्यता है कि अयोध्या नगरी की पावन भूमि पर सरयू नदी के तट पर स्थित रामघाट के निकट इसी स्थल पर संवत् 1631 में रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी जिसका उल्लेख रामचरितमानस में निम्नवत है-
संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा।
नौमी भौम बार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा॥
मानस की रचना करने के उपरान्त गोस्वामी तुलसीदास जी काशी चले गये जिसके परिणामस्वरूप यह स्थान रिक्त हो गया। अयोध्या के संतों-महात्माओं एवं बुद्धिजीवियों की विशेष मांग पर इस स्थान पर तुलसी स्मारक के निर्माण की मांग की गयी जिसके दृष्टिगत तत्कालीन महामहिम श्री राज्यपाल श्री विश्वनाथदास जी ने राजाज्ञा निर्गत कर तुलसी स्मारक भवन के निर्माण के निर्देश जारी किये। इस हेतु दन्तधावन कुण्ड के तत्कालीन महन्त श्री भगवानदास आचारी ने शासन को भूमि हस्तगत कर दी।
वर्ष 1969 में लोक निर्माण विभाग, अयोध्या के प्रान्तीय खण्ड ने इस भवन का निर्माण कराया जिसमें 46×14 वर्ग फिट के दो हाल तथा 22 कक्ष निर्मित किये गये। तुलसी स्मारक भवन के संचालन हेतु एक प्रबन्धकारिणी समिति गठित हुई जिसे 18 अगस्त, 1986 को भंग कर इस भवन में अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना हुई और उसकी समस्त परिसम्पत्ति (चल और अचल) अयोध्या शोध संस्थान के नियंत्रण में प्रदान कर दी गयी। तब से इस भवन में शोध सम्बन्धी गतिविधियां प्रारम्भ हुई। वर्तमान में इस भवन का अत्याधुनिकीकरण करने हेतु इसे नये रूप में तैयार कराया जा रहा है जिसमें इसके पुराने स्वरूप को यथावश्यक कायम रखते हुए विस्तार एवं सौन्दयीकरण का कार्य संस्कृति विभाग की देख-रेख में कराया जा रहा है। दिनांक 09 नवंबर 2023 को अयोध्या शोध संस्थान का नाम एवं कार्य क्षेत्र विस्तीत करते हुए “अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान” नाम स्वीकृत हुआ।
श्री योगी आदित्यनाथ
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश
श्री मुकेश कुमार मेश्राम
प्रमुख सचिव, संस्कृति विभाग,
उ0प्र0/ अध्यक्ष-संस्थान
परिचय: अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान
संस्कृति विभाग, उ0प्र0 शासन द्वारा अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना एक स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में अयोध्या स्थित ऐतिहासिक तुलसी स्मारक भवन में 18 अगस्त, 1986 को की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ-साथ देश-विदेश की विभिन्न संस्कृतियों के साथ सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक आदान-प्रदान के कार्य थे। ऐसी मान्यता है कि अयोध्या नगरी की पावन भूमि पर सरयू नदी के तट पर स्थित रामघाट के निकट इसी स्थल पर संवत् 1631 में रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी जिसका उल्लेख रामचरितमानस में निम्नवत है-
संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा।
नौमी भौम बार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा॥
मानस की रचना करने के उपरान्त गोस्वामी तुलसीदास जी काशी चले गये जिसके परिणामस्वरूप यह स्थान रिक्त हो गया। अयोध्या के संतों-महात्माओं एवं बुद्धिजीवियों की विशेष मांग पर इस स्थान पर तुलसी स्मारक के निर्माण की मांग की गयी जिसके दृष्टिगत तत्कालीन महामहिम श्री राज्यपाल श्री विश्वनाथदास जी ने राजाज्ञा निर्गत कर तुलसी स्मारक भवन के निर्माण के निर्देश जारी किये। इस हेतु दन्तधावन कुण्ड के तत्कालीन महन्त श्री भगवानदास आचारी ने शासन को भूमि हस्तगत कर दी।
वर्ष 1969 में लोक निर्माण विभाग, अयोध्या के प्रान्तीय खण्ड ने इस भवन का निर्माण कराया जिसमें 46×14 वर्ग फिट के दो हाल तथा 22 कक्ष निर्मित किये गये। तुलसी स्मारक भवन के संचालन हेतु एक प्रबन्धकारिणी समिति गठित हुई जिसे 18 अगस्त, 1986 को भंग कर इस भवन में अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना हुई और उसकी समस्त परिसम्पत्ति (चल और अचल) अयोध्या शोध संस्थान के नियंत्रण में प्रदान कर दी गयी। तब से इस भवन में शोध सम्बन्धी गतिविधियां प्रारम्भ हुई। वर्तमान में इस भवन का अत्याधुनिकीकरण करने हेतु इसे नये रूप में तैयार कराया जा रहा है जिसमें इसके पुराने स्वरूप को यथावश्यक कायम रखते हुए विस्तार एवं सौन्दयीकरण का कार्य संस्कृति विभाग की देख-रेख में कराया जा रहा है। दिनांक 09 नवंबर 2023 को अयोध्या शोध संस्थान का नाम एवं कार्य क्षेत्र विस्तीत करते हुए “अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान” नाम स्वीकृत हुआ।
श्री जयवीर सिंह
माननीय मंत्री
संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश
संतोष कुमार शर्मा
निदेशक
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